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Category Archives: Hindi Poetry

matchstick image for manmaani poem by scottshak

मनमानी

कभी रोका ही नहीं ,कभी टोका ही कहाँ ?खुले मैदान में दौड़ लगाने से ,पत्थरों की बिछी चादर पर ना जाने कितने कांटें थे ,सब चुभ जाने थे ,सब छिप जाने थे मेरी चौकस नज़रों से ,आवाज़ बन कर चिल्लाने थे ,आंसू बन कर बह

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बोल पड़ी मैं

मैं गूंगी पतझड़ कीना जाने किस वन कीठहर गया कोईआंगन में मेरेकोई परिंदा दामन से मेरे बाँध गया मुझे रूह से अपनी झांक गया मेरे तन मन को कह न सकी मैं गूंगी थी मैं की रुक जा परिंदे सुन ले तू मेरी पर नहीं