नाशपाती

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नाशपाती नाशपाती,
विश्वासघाती नाशपाती,
मिठास के आड़ में दे जाती
एक विचित्र स्वाद यह नाशपाती।

खाने में न मिलेगा कोई साथी,
क्योंकि सामने रखी है नाशपाती,
उठा उठा कर अकेले खाओ,
फल है भाई यह आत्मघाती।

जा कर चुपचाप बैठ जाती,
चढ़ कर यह मेरे छाती,
भुलाने को तो जी यूँ करता,
पर डकार से है याद दिलाती

की खाया था एक नाशपाती,
जब दौड़ रहे थे घोड़े हाथी,
पेट में लगी थी आग भूख की,
बुझाने आयी थी केवल नाशपाती।

इसकी नही कोई जाति-पाति,
बस हरे से यह पीली हो जाती,
तोड़ कर रख दो भूखों के बीच,
ख़ुशी से फिर फूली न समाती।

इतने छोटे पतले बीज छुपाती,
बड़े से पेट में है ले कर आती
ढेर सारा गूदा यह भर कर,
चबाने पर यह पानी बन जाती।

काटो तो थोड़ा भाव है खाती,
पर मुँह में तुरंत घुल जाती,
दांतों के फिर बीच में जा कर,
अजीबो गरीब गाने सुनाती।

इज़्ज़त न इसकी सेब के भाँति,
हालाँकि उसका कहना मानती,
उस मिठास की कमी कहीं तो
इसको सब से अलग बनाती।

पर इतने दिनों से तू कहाँ थी?
पेड़ों में छिपकर बैठी वहाँ थी,
अब आ गई सामने एकाएक,
ख़ाना पड़ रहा है दिन और राती।

चबाते चबाते रात हो जाती,
खा कर इसको शामत आती,
एक तो कैसे भी निपटा लूँ,
दूसरी मत देना नाशपाती।

कर लो थोड़ा पोता-पाती,
जला लो ज़रा दिया बाती,
पूजा में तुम माँगना साहस,
क्योंकि पेट पूजा में है फिर से नाशपाती।

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