घर न जा परिंदे

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घर न जा परिंदे
वहाँ ताला है बदला,
तेरी चाबी से अब न खुलेगा,
वापस कहाँ जाएगा?
इतने दिनों तू था एक अजनबी,
अब तुझे क्यों कोई गले लगाएगा?
जिस युद्ध में था तू डूबा,
वहाँ जाने से तुझे था रोका ,
तू फिर भी लड़ने था दौड़ा
की तेरा रक्त तो रक्त से
ही शांत हो पाएगा
ग़लतियों का प्याला
तेरा अब भी है भरा
प्यासों को तू कैसे भरोसा दिलाएगा
की तेरे अश्रुओं के सागर
के भुगतान की दिशा
तुझे घर ही बुलाती
वहीं तू सबकी प्यास बुझा पाएगा
तेरे दिल का मुक़दमा
लड़ने के वकील
अब न बाक़ी
तूने सबका ही ईमान
बेच खाया था
छुप छुप कर रोया फिर
घर की याद को
यह सोच कर की
कहीं तो है वह मंज़र
जहाँ तुझे बचपन याद आएगा
की तेरे लौटने पर
ख़ुशी से कोई तो होगा
जो फूला न समाएगा
की कुछ तो है तेरा अपना
जिसे तू विश्वास के बांध से
कब से था जोड़े बैठा
की समय आख़िर सब कुछ तो
नही ही बदल पाएगा
की तेरा अभाव
तेरा यूँ खो जाना
मिल जाने को आज भी
जीवित रख जाएगा
लोग अब भी आस देख रहे होंगे
ज़ख्मों को ताज़ा रख
अब भी रो रहे होंगे
की जाने वाला कब वापस आएगा?
और तू सांसारिक मदिरा में मस्त
जमानत के काग़ज़ में व्यस्त
यह सोच मुस्का रहा कि
लौटने पर तुझे कौन विजयी तिलक लगाएगा?
तेरी यादें तेरी याद को याद कर चल बसी
तेरे खिलौने कब के बिक चुके
तेरी चीज़ों की रद्दी बाहर है रखी
जा तेरा वजूद तुझे मलहम लगाएगा
तू स्वार्थ में मुरझा बैठा
तेरे फूलों की बगिया
यहाँ तेरे लिये प्यार की भाषा
अब शायद ही कोई बोल पाएगा
ले आ अपने चाभियों का तिकड़म
जा टटोल ले ताला
कमरा कब से था अभागा
बिना तोड़े शायद ही खुल पाएगा

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