अकेले चल मुसाफ़िर

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इस तन्हाई की आदत डाल मुसाफ़िर,
आगे तुझे अकेला ही चलना पड़ेगा,
सफ़र अभी बहुत लम्बा है मुसाफ़िर,
यूँ घुटने टेक देगा तो कैसे चलेगा?

लोग तो बस राही थे मुसाफ़िर,
पैदा तो तू अकेला ही हुआ था,
रस्ते सब के अलग होते हैं मुसाफ़िर,
तेरे रस्ते तुझे अकेला ही चलना पड़ेगा |

रास्ता टेढ़ा मेढ़ा होगा मुसाफ़िर,
पर वह भी यूँ कट जाएगा,
प्यासे को पानी पिलाने वाला मुसाफ़िर
हर मोड़ पर तुझे मिल जाएगा |

कांटो की राह पर मुसाफ़िर,
कोई शायद ही स्वयं जाएगा,
वीरों के पथ पर चलने वाला
तू सबको राह दिखाएगा |

कदमों को तेज़ चला मुसाफ़िर,
नहीं तो अँधेरा हो जाएगा,
तेरे ढृढ़ निश्चय की रौशनी
तुझे तेरा मार्ग कब तक दिखाएगा?

संग तेरे कई चलेंगे मुसाफ़िर,
अकेलापन दूर हो जाएगा,
पर मंज़िल सब की अलग होगी मुसाफ़िर,
आगे तू फिर अकेला हो जाएगा |

पीछे मुड़ कर देख मुसाफ़िर,
तेरा साया हमेशा तेरे साथ जाएगा,
अगर कुछ न मिले मनोरंजन को मुसाफ़िर,
कम से कम यह तो आँखमिचौनी खेलेगा |

मार्ग अगर सहज हो मुसाफ़िर,
लक्ष्य झट पास आ जाएगा,
पर यातना से भरा हर मार्ग मुसाफ़िर,
तुझे तेरा अकेलापन याद दिलाएगा |

इसलिए आदत डाल अकेलेपन की,
कब तक संग सबको ले जाएगा?
एक दिन सब छोड़ देंगे मुसाफ़िर,
तू फिर अकेला ही हो जाएगा |

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